तेज़ लहजे की अनी पर न उठा लें ये कहीं

तेज़ लहजे की अनी पर न उठा लें ये कहीं

बच्चे नादान हैं पत्थर न उठा लें ये कहीं

जिन जज़ीरों को ये जाते हैं क़नाअत कर लो!

सोचते रहने में लंगर न उठा लें ये कहीं

ए'तिमाद उन पे करो ख़दशा है ये भी वर्ना

दस्त-ए-साहिल से समुंदर न उठा लें ये कहीं

उन के हाथों की तनाबें हैं ज़मीं पर लिपटी

शहर की आँख से मंज़र न उठा लें ये कहीं

अहद भी उन ही का हम-ज़ेहन है सो चुप ही रहें

अगली सदियों के कैलेंडर न उठा लें ये कहीं

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In Hindi By Famous Poet Tariq Jami. is written by Tariq Jami. Complete Poem in Hindi by Tariq Jami. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.