मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
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जुनूँ की पैरवी से ख़ुश नहीं हूँ
अज़ल से बंद दरवाज़ा खुला तो
रात की ग़ार में उतरने का
मेरी कोशिश तो यही है कि ये मा'सूम रहे
ऐसी प्यास और ऐसा सब्र
मैं तो किसी जुलूस में गया नहीं
वो निहत्ता नहीं अकेला है
मोहब्बत के आदाब सीखो ज़रा
हमारे दरमियाँ जो उठ रही थी
ज़रा लौ चराग़ की कम करो मिरा दुख है फिर से उतार पर
मुद्दतें हो गईं हिसाब किए
तन्हा होता हूँ तो मर जाता हूँ मैं