बदन में आग है रोग़न मिरे ख़याल में है
जुदा ही रह अभी ख़तरा बहुत विसाल में है
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हर मुलाक़ात पे सीने से लगाने वाले
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
मुझ से कब उस को मोहब्बत थी मगर मेरे बा'द
इतना हैरान न हो मेरी अना पर प्यारे
बचा के आँख बिछड़ जाएँ उस से चुपके से
हमीं ने हश्र उठा रक्खा है बिछड़ने पर
इस ख़राबी की कोई हद है कि मेरे घर से
इस से पहले कि ये आज़ार गवारा कर लें
वो एक हाथ बढ़ाएगा तुझ को पा लेगा
तमाम इश्क़ की मोहलत है इस आँखों में