इसी खंडर में मिरे ख़्वाब की गली भी थी
गली में पेड़ भी था पेड़ पर समर भी था
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Wasi Shah
Gulzar
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(952) Peoples Rate This
कितने पेच-ओ-ताब में ज़ंजीर होना है मुझे
पहले मैं तेरी नज़र में आया
इसी पे शहर की सारी हवाएँ बरहम थीं
ख़्वाब आईना कर रही है दिल में
हर नज़र में है असासा अपना
आँख में ठहरा हुआ सपना बिखर भी जाएगा
उसी हरीफ़ की ग़ारत-गरी का डर भी था
क्या रूप बरस रहा है