जब मैं कच्चा फल था तो महफ़ूज़ था मैं
अब जो पका तो मुझ पे निशाना लगता है
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वक़्त की महरूमियों ने छीन ली मेरी ज़बान
सारा बदन है ख़ून से क्यूँ तर उसे दिखा
बौना था वो ज़रूर मगर इस के बावजूद
उन्हें क़ैद करने की कोशिश है कैसी
क़ातिल तो सीना तान के चलते रहे यहाँ
सर पर दुख का ताज सुहाना लगता है
हम रिवायत के साँचे में ढलते भी हैं
सोचा कि वा हो सब्ज़ दरीचा जो बंद था
ढूँडते हो क्यूँ जली तहरीर के असबाक़ में
लग़्ज़िशें तन्हाइयों की सब बता दी जाएँगी
ज़ख़्मों की मुनाजात में पिन्हाँ वो असर था