देख कभी आ कर ये ला-महदूद फ़ज़ा
तू भी मेरी तन्हाई में शामिल हो
Gulzar
Wasi Shah
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(926) Peoples Rate This
भड़कती आग है शो'लों में हाथ डाले कौन
किस ने सहरा में मिरे वास्ते रक्खी है ये छाँव
बे-कराँ दश्त-ए-बे-सदा मेरे
छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूँ
उड़ा के ख़ाक बहुत मैं ने देख ली ऐ 'ज़ेब'
'ज़ेब' मुझे डर लगने लगा है अपने ख़्वाबों से
इक पीली चमकीली चिड़िया काली आँख नशीली सी
हवा में उड़ता कोई ख़ंजर जाता है
एक किरन बस रौशनियों में शरीक नहीं होती
तूफ़ाँ में नाव आई तो क्या सम्त क्या निशाँ