छेड़ कर जैसे गुज़र जाती है दोशीज़ा हवा
देर से ख़ामोश है गहरा समुंदर और मैं
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1170) Peoples Rate This
बे-हिसी पर मिरी वो ख़ुश था कि पत्थर ही तो है
फिर एक नक़्श का नैरंग 'ज़ेब' बिखरेगा
घसीटते हुए ख़ुद को फिरोगे 'ज़ेब' कहाँ
उस की राहों में पड़ा मैं भी हूँ कब से लेकिन
रास्ते में कहीं खोना ही तो है
मौज़ू-ए-सुख़न हिम्मत-ए-आली ही रहेगी
बुझते सूरज ने लिया फिर ये सँभाला कैसा
शायद अब भी कोई शरर बाक़ी हो 'ज़ेब'
अक्स-ए-फ़लक पर आईना है रौशन आब ज़ख़ीरों का
मरने का सुख जीने की आसानी दे
लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है
रंग-ए-ग़ज़ल में दिल का लहू भी शामिल हो