शेर तो मुझ से तेरी आँखें कहला लेती हैं
चुप रहता हूँ मैं जब तक तहरीक नहीं होती
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1021) Peoples Rate This
ढूँढती फिरती हैं जाने मिरी नज़रें किस को
चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन दूर सितारे सा
टूटती रहती है कच्चे धागे सी नींद
कोई भी दर न मिला नारसी के मरक़द में
मैं पयम्बर तिरा नहीं लेकिन
आलम से फ़ुज़ूँ तेरा आलम नज़र आता है
मैं तो चाक पे कूज़ा-गर के हाथ की मिट्टी हूँ
है सदफ़ गौहर से ख़ाली रौशनी क्यूँकर मिले
दिल को सँभाले हँसता बोलता रहता हूँ लेकिन
अब तक तो किसी ग़ैर का एहसाँ नहीं मुझ पर
घसीटते हुए ख़ुद को फिरोगे 'ज़ेब' कहाँ