'ज़ेब' मुझे डर लगने लगा है अपने ख़्वाबों से
जागते जागते दर्द रहा करता है मिरे सर में
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'ज़ेब' अब ज़द में जो आ जाए वो दिल हो कि निगाह
ख़ंजर चमका रात का सीना चाक हुआ
ढूँढती फिरती हैं जाने मिरी नज़रें किस को
ख़ाक आईना दिखाती है कि पहचान में आ
जितना देखो उसे थकती नहीं आँखें वर्ना
कम रौशन इक ख़्वाब आईना इक पीला मुरझाया फूल
जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
लहर लहर क्या जगमग जगमग होती है
खुली छतों से चाँदनी रातें कतरा जाएँगी
आगे चल के तो कड़े कोस हैं तन्हाई के