हमें तो इस लिए जा-ए-नमाज़ चाहिए है
कि हम वजूद से बाहर क़याम करते हैं
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पानी आँख में भर कर लाया जा सकता है
हँसने नहीं देता कभी रोने नहीं देता
अब अधूरे इश्क़ की तकमील ही मुमकिन नहीं
सदा-ए-ज़ात के ऊँचे हिसार में गुम है
रात कमरे में न था मेरे अलावा कोई
तेरे लिए सब छोड़ के तेरा न रहा मैं
न तुझ से है न गिला आसमान से होगा
हर-चंद तिरी याद जुनूँ-ख़ेज़ बहुत है
हिज्र को हौसला और वस्ल को फ़ुर्सत दरकार
शाख़ पर फूल फ़लक पर कोई तारा भी नहीं
हम ने चुप रह के जो एक साथ बिताया हुआ है
हवा-ए-तेज़ तिरा एक काम आख़िरी है