शेर अच्छे भी कहो सच भी कहो कम भी कहो
दर्द की दौलत-ए-नायाब को रुस्वा न करो
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Habib Jalib
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1042) Peoples Rate This
हद-ए-उफ़ुक़ पर सारा कुछ वीरान उभरता आता है
मिरी रफ़ीक़-ए-नफ़्स मौत तेरी उम्र दराज़
हर इक लम्हे की रग में दर्द का रिश्ता धड़कता है
ज़माने सब्ज़ ओ सुर्ख़ ओ ज़र्द गुज़रे
बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे
खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है
मैं बढ़ते बढ़ते किसी रोज़ तुझ को छू लेता
प्यास बुझ जाए ज़मीं सब्ज़ हो मंज़र धुल जाए
सबक़ उम्र का या ज़माने का है
नेक गुज़रे मिरी शब सिद्क़-ए-बदन से तेरे
पस-ए-तक़रीब-ए-मुलाक़ात
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई