शायरी तलब अपनी शायरी अता उस की
हौसले से कम माँगा ज़र्फ़ से सिवा पाया
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(997) Peoples Rate This
हर इक धड़कन अजब आहट
फीकी ज़र्द दोपहर
न मक़ामात न तरतीब-ए-ज़मानी अपनी
शोलों से बे-कार डराते हो हम को
सोच कर भी क्या जाना जान कर भी क्या पाया
बजा कि लुत्फ़ है दुनिया में शोर करने का
हम अपने ज़ख़्म कुरेदते हैं वो ज़ख़्म पराए धोते थे
जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया
आवाज़ के मोती
बहुत मलूल बड़े शादमाँ गए हुए हैं
सवाल बे-अमान बन के रह गए