शिकस्त-ए-व'अदा की महफ़िल अजीब थी तेरी
मिरा न होना था बरपा तिरे न आने में
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
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मिज़ाज-ए-सहल-तलब अपना रुख़्सतें माँगे
जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार
यूँ तो सौ तरह की मुश्किल सुख़नी आए हमें
दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है
बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की गिरहें खोलें
नानी-अमाँ की वफ़ात पर एक नज़्म
गोशे
वो तो ऐसा भी है वैसा भी है कैसा है मगर?
'सादेम'
ख़याल-ए-ख़ातिर-ए-अहबाब
बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे
जैसे कोई दायरा तकमील पर है