जैसे कोई दायरा तकमील पर है
इन दिनों मुझ पर गुज़िश्ता का असर है
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(952) Peoples Rate This
मिरे मह ओ साल की कहानी की दूसरी क़िस्त इस तरह है
यूँ भी दिल अहबाब के हम ने गाहे गाहे रक्खे थे
दिल-दही
खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई
मुफ़्लिसी भूक को शहवत से मिला देती है
जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया
बाम-ओ-दर की रौशनी फिर क्यूँ बुलाती है मुझे
अबस है राज़ को पाने की जुस्तुजू क्या है
हम अपने ज़ख़्म कुरेदते हैं वो ज़ख़्म पराए धोते थे
नींद मिट्टी की महक सब्ज़े की ठंडक
फ़साद के ब'अद