ये खुला जिस्म खुले बाल ये हल्के मल्बूस
तुम नई सुब्ह का आग़ाज़ करोगे शायद
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बे-क़रारी
जगा जुनूँ को ज़रा नक़्शा-ए-मुक़द्दर खींच
बड़ा ख़ुशनुमा ये मक़ाम है नई ज़िंदगी की तलाश कर
ऐ दोस्त तिरी बात सहर-ख़ेज़ बहुत है
आप से उन्स हुआ चाहता है
फैले हुए ग़ुबार का फिर मो'जिज़ा भी देख
दवाम
यूँ ख़बर किसे थी मेरी तिरी मुख़बिरी से पहले
दुश्मनों को मिरे हमराज़ करोगे शायद
मोहब्बत
जब अपना साया ही दुश्मन है क्या किया जाए