इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
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दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है
ये बे-दिली है तो कश्ती से यार क्या उतरें
जान से इश्क़ और जहाँ से गुरेज़
ख़्वाबों के ब्योपारी
मैं और तू
हँसी-ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
अगरचे ज़ोर हवाओं ने डाल रक्खा है
वो अपने ज़ोम में था बे-ख़बर रहा मुझ से
न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िंदगी
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की