कभी 'फ़राज़' से आ कर मिलो जो वक़्त मिले
ये शख़्स ख़ूब है अशआर के अलावा भी
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2610) Peoples Rate This
न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की
वापसी
हमदर्द
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ
पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे
सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है