दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं
देखने में ज़ाहिरा लगते हैं सैलानी से हम
Anwar Masood
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(918) Peoples Rate This
क्या पूछते हो शहर में घर और हमारा
हुस्न नजात-दहिन्दा है
उस की आँखों के वस्फ़ क्या लिक्खूँ
एक ख़याल
हमारी हम-नफ़सी को भी क्या दवाम हुआ
अन-पढ़ गूँगे का रजज़
सबा देख इक दिन इधर आन कर के
निहाल-ए-वस्ल नहीं संग-बार करने को
दिल आईना है मगर इक निगाह करने को
किया है दिल ने बेगाना जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही से
गए थे वहाँ जी में क्या ठान कर के
अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से