मशग़ूल हैं सफ़ाई-ओ-तौसी-ए-दिल में हम
तंगी न इस मकान में हो मेहमान को
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हुस्न नजात-दहिन्दा है
हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
मगर वो दिया ही नहीं मान कर के
दुनिया से तन को ढाँप क़यामत से जान को
ख़बर नहीं है मिरे बादशाह को शायद
एक आँसू से कमी आ जाएगी
एक तअस्सुर
ये क्या चीज़ तामीर करने चले हो
कोई जल में ख़ुश है कोई जाल में
दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना
दिल आईना है मगर इक निगाह करने को
तुलू-ए-साअत-ए-शब-ख़ूँ है और मेरा दिल