तिरी दुनिया में ऐ दिल हम भी इक गोशे में रहते हैं
हमें भी कुछ उम्मीदें हैं तिरी आलम-पनाही से
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बारिश का है ऐसा काल
दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना
किया है दिल ने बेगाना जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही से
अजब सफ़र था अजब-तर मुसाफ़िरत मेरी
एक आँसू से कमी आ जाएगी
उस की आँखों के वस्फ़ क्या लिक्खूँ
दिल आईना है मगर इक निगाह करने को
किसी का ध्यान मह-ए-नीम-माह में आया
हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा
क्या पूछते हो शहर में घर और हमारा
आख़िरुल-अम्र तिरी सम्त सफ़र करते हैं