तुलू-ए-साअत-ए-शब-ख़ूँ है और मेरा दिल
किसी सितारा-ए-बद की निगाह में आया
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उस की आँखों के वस्फ़ क्या लिक्खूँ
कितने में बनती है मोहर ऐसी
दुनिया से तन को ढाँप क़यामत से जान को
दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं
अन-पढ़ गूँगे का रजज़
एक तअस्सुर
कोई जल में ख़ुश है कोई जाल में
आँधी का रजज़
तिरी दुनिया में ऐ दिल हम भी इक गोशे में रहते हैं
एक खेल
ये क्या चीज़ तामीर करने चले हो
हमेशा दिल हवस-ए-इंतिक़ाम पर रक्खा