यही दिल जो इक बूँद है बहर-ए-ग़म की
डुबो देगा सब शहर तूफ़ान कर के
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एक ख़याल
आँधी का रजज़
ये एक लम्हे की दूरी बहुत है मेरे लिए
मुझ से बड़ा है मेरा हाल
किया है दिल ने बेगाना जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही से
उस की आँखों के वस्फ़ क्या लिक्खूँ
दिल से बाहर आज तक हम ने क़दम रक्खा नहीं
तुलू-ए-साअत-ए-शब-ख़ूँ है और मेरा दिल
किसी का ध्यान मह-ए-नीम-माह में आया
एक तअस्सुर
मौजूद हैं कितने ही तुझ से भी हसीं कर के
अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से