ये एक लम्हे की दूरी बहुत है मेरे लिए
तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार करने को
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दिल-ए-बेताब के हमराह सफ़र में रहना
यही दिल जो इक बूँद है बहर-ए-ग़म की
एक सूरमा के नाम
मुझ से बड़ा है मेरा हाल
आख़िरुल-अम्र तिरी सम्त सफ़र करते हैं
तिरी दुनिया में ऐ दिल हम भी इक गोशे में रहते हैं
घर और बयाबाँ में कोई फ़र्क़ नहीं है
निहाल-ए-वस्ल नहीं संग-बार करने को
अच्छी गुज़र रही है दिल-ए-ख़ुद-कफ़ील से
गए थे वहाँ जी में क्या ठान कर के
आँधी का रजज़