मैं घर को फूँक रहा था बड़े यक़ीन के साथ
कि तेरी राह में पहला क़दम उठाना था
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उस के नज़दीक ग़म-ए-तर्क-ए-वफ़ा कुछ भी नहीं
सितारा ले गया है मेरा आसमान से कौन
वो मुस्कुरा के कोई बात कर रहा था 'शुमार'
तू ने एक उम्र के बाद पूछा है हाल-ए-दिल
ख़्वाहिश-ए-जादा-ए-राहत से निकलता कैसे
उस की चाह में नाम नहीं आने वाला
मुद्दतों में आज दिल ने फ़ैसला आख़िर दिया
पहाड़ भाँप रहा था मिरे इरादे को
अब तो हाथों से लकीरें भी मिटी जाती हैं
ऐ दुनिया तेरे रस्ते से हट जाएँगे
वो जिस का अक्स लहू को जगा दिया करता