तालाब इरादे का भरे पल में लबालब
जब यार के दरिया-ए-करम सूँ लहर आवे
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अक़्ल-ए-जुज़वी छोड़ कर ऐ यार फ़िक्र-ए-कुल करो
इश्क़ आ हम सूँ किया जब राम राम
इश्क़ के कूचे में जब जाता है दिल करने को सैर
ला-मकाँ लग आशिक़ाँ के इश्क़ का पर्वाज़ है
नको नसीहत करो अज़ीज़ाँ निगा है हमना मुहन सूँ मीता
ग़फ़लत में सोया अब तिलक फिर होवेगा होश्यार कब
तू है किस मंज़िल में तेरा बोल खाँ है दिल का ठार
'बहरी' पछाने नीं उसे गुल के सो वो दम-साज़ थे
लगा कर इश्क़ का कजरा नयन को
अब तलक हक़ नहिं पछाने वाह-वाह
समझ के देखो ऐ आरिफ़ाँ तुम किया है हक़ ने ये भेद कैसा
तेज़ी तिरे मिज़्गाँ की ये नश्तर से कहूँगा