इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर
कि जानता हूँ मआल-ए-सिकंदरी क्या है
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Anwar Masood
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Gulzar
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2371) Peoples Rate This
महीने वस्ल के घड़ियों की सूरत उड़ते जाते हैं
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
निगह उलझी हुई रंग-ओ-बू में
तरीक़-ए-अहल-ए-दुनिया है गिला-शिकवा ज़माने का
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
फ़रमान-ए-ख़ुदा
था जहाँ मदरसा-ए-शीरी-ओ-शाहंशाही
हर इक ज़र्रे में है शायद मकीं दिल
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
निकल जा अक़्ल से आगे कि ये नूर