ख़ुदी की ख़ल्वतों में गुम रहा मैं
ख़ुदा के सामने गोया न था मैं!
न देखा आँख उठा कर जल्वा-ए-दोस्त
क़यामत में तमाशा बन गया मैं!
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गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर
नया शिवाला
कल अपने मुरीदों से कहा पीर-ए-मुग़ाँ ने
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
इसी ख़ता से इताब-ए-मुलूक है मुझ पर
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
मार्च 1907
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया