ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को
कि मैं आप का सामना चाहता हूँ
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मैं जो सर-ब-सज्दा हुआ कभी तो ज़मीं से आने लगी सदा
गला तो घोंट दिया अहल-ए-मदरसा ने तिरा
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
अजब नहीं कि ख़ुदा तक तिरी रसाई हो
सख़्तियाँ करता हूँ दिल पर ग़ैर से ग़ाफ़िल हूँ मैं
उमीद-ए-हूर ने सब कुछ सिखा रक्खा है वाइज़ को
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो
ये दैर-ए-कुहन क्या है अम्बार-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक