वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
अभी तलक नहीं भूली वो दास्ताँ मुझ को
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हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ
मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना
पीला था चाँद और शजर बे-लिबास थे
ऐ जुनूँ उस की कहानी भी सुनाऊँगा तुझे
ताएरों की उड़ान में हम हैं
रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
वो शख़्स जिस की ख़ुशी का बाइस थीं मेरी बातें
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त