वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो
तेरी किताब-ए-हुस्न के सब इक़्तिबास थे
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रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
पीला था चाँद और शजर बे-लिबास थे
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं
ताएरों की उड़ान में हम हैं
हम फ़क़त तेरी गुफ़्तुगू में नहीं
वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ