शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
उम्र ढल जाती है जल्दी पलट आना मिरे दोस्त
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हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए
हिज्र इंसाँ के ख़द-ओ-ख़ाल बदल देता है
मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना
वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ
हम फ़क़त तेरी गुफ़्तुगू में नहीं
ताएरों की उड़ान में हम हैं
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
पीला था चाँद और शजर बे-लिबास थे
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त