हम फ़क़त तेरी गुफ़्तुगू में नहीं
हर सुख़न हर ज़बान में हम हैं
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शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं
ये लोग ढूँड रहे हैं यहाँ वहाँ मुझ को
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है
ऐ जुनूँ उस की कहानी भी सुनाऊँगा तुझे
हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
जा तुझे तेरे हवाले कर दिया