ऐ जुनूँ उस की कहानी भी सुनाऊँगा तुझे
ये जो पैवंद मिरे चाक में देखा गया है
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शाम ढलने से फ़क़त शाम नहीं ढलती है
वो जिस में लौट के आती थी एक शहज़ादी
अजब तरह के कमाल करने भी आ गए हैं
अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं
मैं सीखता रहा इक उम्र हाव-हू करना
ताएरों की उड़ान में हम हैं
हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए
अक्स को फूल बनाने में गुज़र जाती है
याद रक्खेगा मिरा कौन फ़साना मिरे दोस्त
शाम होती है तो लगता है कोई रूठ गया
दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ