हमारे हाथ फ़क़त रेत के सदफ़ आए
कि साहिलों पे सितारा कोई रहा ही न था
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जब हमें इज़्न तमाशा होगा
मय-शिकस्ता-दिली ऐ हरीफ़-ए-ज़ौक़-ए-नुमू
किसे कहें कि रिफ़ाक़त का दाग़ है दिल पर
हर शख़्स इस हुजूम में तन्हा दिखाई दे
हम ने हर ख़्वाब को ताबीर अता की 'असलम'
वो नख़्ल जो बार-वर हुए हैं
गुबार-ए-एहसास-ए-पेश-ओ-पस की अगर ये बारीक तह हटाएँ
हम को पहचान कि ऐ बज़म-ए-चमन-ज़ार-ए-वजूद
मुझे तो ये भी फ़रेब-ए-हवास लगता है
बुझी है आतिश-ए-रंग-ए-बहार आहिस्ता आहिस्ता
एक समुंदर एक किनारा एक सितारा काफ़ी है
दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले