हम को पहचान कि ऐ बज़म-ए-चमन-ज़ार-ए-वजूद
हम न होते तो तुझे किस ने सँवारा होता
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ज़रा सी बात पे क्या क्या फ़साना-साज़ी है
वो रंग उड़े हैं कुछ अब के बरस बहारों के
दीवार-ए-ख़स्तगी हूँ मुझे हाथ मत लगा
कभी ऐसा तमव्वुज तुम ने देखा है
ऐ ज़मिस्ताँ की हवा तेज़ न चल
मैं ने रोका भी नहीं और वो ठहरा भी नहीं
उड़ा है रफ़्ता रफ़्ता रंग तस्वीर-ए-मोहब्बत का
इक बर्ग बर्ग दिन की ख़बर चाहिए मुझे
मुझे तो ये भी फ़रेब-ए-हवास लगता है
किसे कहें कि रिफ़ाक़त का दाग़ है दिल पर
दर्स-ए-आदाब-ए-जुनूँ याद दिलाने वाले