तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ
तू भी तो एक लफ़्ज़ है इक दिन मिरे बयाँ में आ
मेरे यक़ीं में गश्त कर मेरी हद्द-ए-गुमाँ में आ
नींदों में दौड़ता हुआ तेरी तरफ़ निकल गया
तू भी तो एक दिन कभी मेरे हिसार-ए-जाँ में आ
इक शब हमारे साथ भी ख़ंजर की नोक पर कभी
लर्ज़ीदा चश्म-ए-नम में चल जलते हुए मकाँ में आ
नर्ग़े में दोस्तों के तू कब तक रहेगा सुर्ख़-रू
नेज़ा-ब-नेज़ा दू-ब-दू-सफ़-हा-ए-दुश्मनाँ में आ
इक रोज़ फ़िक्र-ए-आब-ओ-नाँ तुझ को भी हो जान-ए-जहाँ
क़ौस-ए-अबद को तोड़ कर इस अर्सा-ए-ज़ियाँ में आ
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