एक नश्शा है ख़ुद-नुमाई भी
जो ये उतरे तो फिर तुझे देखूँ
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जान ले ले न ज़ब्त-ए-आह कहीं
मैं सारे फ़ासले तय कर चुका हूँ
वही आँसू वही माज़ी के क़िस्से
बात बिगड़ी हुई बनी सी रही
अब उजड़ने के हम न बसने के
कौन कहता है ठहर जाना है
अपना बिगड़ा हुआ बनाव लिए
मुस्कुराने का फ़न तो बअ'द का है
हमें देखा न कर उड़ती नज़र से
जो है चश्मा उसे सराब करो
कम न होगी ये सरगिरानी क्या
बारिशों में अब के याद आए बहुत