हमें इस तरह ही होना था आबाद
हमारे साथ वीराने लगे हैं
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समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है
बअ'द मुद्दत ये जिला किस के हुनर ने बख़्शी
यकायक अक्स धुँदलाने लगे हैं
एक नश्शा है ख़ुद-नुमाई भी
समुंदर है कोई आँखों में शायद
हवस शामिल है थोड़ी सी दुआ में
कशिश तुझ सी न थी तेरे ग़मों में
मिरे कुछ भी कहे को काटता है
बारिशों में अब के याद आए बहुत
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
वही आँसू वही माज़ी के क़िस्से
हमें रास आनी है राहों की गठरी