हवस शामिल है थोड़ी सी दुआ में
अभी इस लौ में हल्का सा धुआँ है
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शाम उतरी है फिर अहाते में
बात बिगड़ी हुई बनी सी रही
बार-ए-दीगर ये फ़लसफ़े देखूँ
ख़्वाब नद्दी सा गुज़र जाएगा
मुस्कुराने का फ़न तो बअ'द का है
समाअ'त के लिए इक इम्तिहाँ है
दिल से बे-सूद और जाँ से ख़राब
बारिशों में अब के याद आए बहुत
हमें इस तरह ही होना था आबाद
यकायक अक्स धुँदलाने लगे हैं
कशिश तुझ सी न थी तेरे ग़मों में
जान ले ले न ज़ब्त-ए-आह कहीं