जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रक्खा है कि मैं
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं
Allama Iqbal
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1040) Peoples Rate This
अक्स हर रोज़ किसी ग़म का पड़ा करता है
आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी
विसाल
अबदियत
मुझे कहना है
प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह
दिल के हर दर्द ने अशआ'र में ढलना चाहा
घटती बढ़ती रौशनियों ने मुझे समझा नहीं
क्या क्या लोग ख़ुशी से अपनी बिकने पर तय्यार हुए
कोई यादों से जोड़ ले हम को
ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए