बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
कोई आँसू गिरा था याद होगा
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कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते
किसी की याद में पलकें ज़रा भिगो लेते
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं
अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया
वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई