चाँद सा मिस्रा अकेला है मिरे काग़ज़ पर
छत पे आ जाओ मिरा शेर मुकम्मल कर दो
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वही ताज है वही तख़्त है वही ज़हर है वही जाम है
दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
शाम आँखों में आँख पानी में
नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
बे-तहाशा सी ला-उबाली हँसी
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
नज़र से गुफ़्तुगू ख़ामोश लब तुम्हारी तरह
सोए कहाँ थे आँखों ने तकिए भिगोए थे
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी