दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में
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मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से
शाम आँखों में आँख पानी में
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
यारो नए मौसम ने ये एहसान किए हैं
उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ