दिल उजड़ी हुई एक सराए की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते
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वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियाँ
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से
ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
दिल में इक तस्वीर छुपी थी आन बसी है आँखों में
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
हँसो आज इतना कि इस शोर में
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए