दिन में परियों की कोई कहानी न सुन
जंगलों में मुसाफ़िर भटक जाएँगे
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इसी लिए तो यहाँ अब भी अजनबी हूँ मैं
मुसाफ़िर के रस्ते बदलते रहे
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
न जी भर के देखा न कुछ बात की
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए
तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली
घर नया बर्तन नए कपड़े नए
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी