हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है
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पत्थर मुझे कहता है मिरा चाहने वाला
अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जाएगा
मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
मिरी ज़िंदगी भी मिरी नहीं ये हज़ार ख़ानों में बट गई
दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
कभी तो शाम ढले अपने घर गए होते
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा