हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है
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भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
रोने वालों ने उठा रक्खा था घर सर पर मगर
ग़ज़लों का हुनर अपनी आँखों को सिखाएँगे
ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
किसी ने चूम के आँखों को ये दुआ दी थी
वो चेहरा किताबी रहा सामने
ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए