ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
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रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
मैं तुम को भूल भी सकता हूँ इस जहाँ के लिए
उस की आँखों को ग़ौर से देखो
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
वो अपने घर चला गया अफ़्सोस मत करो
मुझ से बिछड़ के ख़ुश रहते हो
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में
वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ
मेरे दिल की राख कुरेद मत इसे मुस्कुरा के हवा न दे