ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
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इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए
ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
उन्हीं रास्तों ने जिन पर कभी तुम थे साथ मेरे
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
कभी मैं अपने हाथों की लकीरों से नहीं उलझा
मेरा शैतान मर गया शायद
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा था
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए