कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता
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भीगी हुई आँखों का ये मंज़र न मिलेगा
ग़ज़लों ने वहीं ज़ुल्फ़ों के फैला दिए साए
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है
हयात आज भी कनीज़ है हुज़ूर-ए-जब्र में
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
न उदास हो न मलाल कर किसी बात का न ख़याल कर
इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
वो बड़ा रहीम ओ करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए